La Phir Ek Baar Wahi | ला फिर एक बार वही
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Bal-e-Jibreel
ला फिर एक बार वही बादा-ओ-जाम ऐ साक़ी
हाथ आ जाए मुझे मेरा मक़ाम ऐ साक़ी !
तीन सो साल से हैं हिन्द के मयख़ाने बंद
अब मुनासिब है तेरा फ़ैज़ हो आम ऐ साक़ी !
मेरी मीना-ए-ग़ज़ल में थी ज़रा सी बाक़ी
शैख़ कहता है क: है यह भी हराम ऐ साक़ी !
शेर मर्दों से हुआ बैशा-ए-तहक़ीक़ तही
रह गए सूफ़ी-ओ-मुल्ला के ग़ुलाम ऐ साक़ी !
इश्क़ की तेग़-ए-जिगरदार उड़ा ली किसने
इल्म के हाथ में ख़ाली है नियाम ऐ साक़ी !
सीना रोशन हो तो है सोज़-ए-सुख़न ऐन-ए-हयात
हो न रोशन, तो सुख़न मर्ग-ए-दवाम ऐ साक़ी !
तू मेरी रात को महताब से महरूम न रख
तेरे पैमाने में है माहे तमाम ऐ साक़ी !
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हाथ आ जाए मुझे मेरा मक़ाम ऐ साक़ी !
तीन सो साल से हैं हिन्द के मयख़ाने बंद
अब मुनासिब है तेरा फ़ैज़ हो आम ऐ साक़ी !
मेरी मीना-ए-ग़ज़ल में थी ज़रा सी बाक़ी
शैख़ कहता है क: है यह भी हराम ऐ साक़ी !
शेर मर्दों से हुआ बैशा-ए-तहक़ीक़ तही
रह गए सूफ़ी-ओ-मुल्ला के ग़ुलाम ऐ साक़ी !
इश्क़ की तेग़-ए-जिगरदार उड़ा ली किसने
इल्म के हाथ में ख़ाली है नियाम ऐ साक़ी !
सीना रोशन हो तो है सोज़-ए-सुख़न ऐन-ए-हयात
हो न रोशन, तो सुख़न मर्ग-ए-दवाम ऐ साक़ी !
तू मेरी रात को महताब से महरूम न रख
तेरे पैमाने में है माहे तमाम ऐ साक़ी !
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