Wo Harf-e-Raaz | वो हर्फ़-ए-राज़
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Bal-e-Jibreel
वो हर्फ़-ए-राज़ क: मुझको सिखा गया है जुनूँ
ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिबरईल दे तो कहूँ.
सितारा क्या मेरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़लाक में है ख़्वार-ओ-ज़बूं.
हयात क्या है, ख़याल-ओ-नज़र की मजज़ूबी
ख़ुदी की मौत है अन्देशा हाए गू-ना-गूं.
अजब मज़ा है, मुझे लज़्ज़त-ए-ख़ुदी देकर
वो चाहते हैं क: मैं अपने आप में न रहूँ.
ज़मीर-ए-पाक-ओ-निगाह-ए-बुलन्द-ओ-मस्ती-ए-शौक़
न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूं, न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ
सबक़ मिला है यह मेअराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
क: आलम-ए-बशरिय्यत की ज़द में है गर्दूं
यह कायनात अभी ना-तमाम है शायद
क: आ रही है दमादम सदा-ए-कुन फ़-य-कूँ
इलाज आतिश-ए-रूमी के सोज़ में है तेरा
तेरी ख़िरद पे है ग़ालिब फिरंगियों का फ़सूं
उसी के फ़ैज़ से मेरी निगाह है रौशन
उसी के फ़ैज़ से मेरे सबू में है जेहूँ !
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